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परीक्षा | १३
ओर हाथ बढ़ाकर विशेष प्रसन्नता व्यक्त करते हुए 'कृत दुष्कर दुष्करः' कहा, अर्थात-'हे मुनि ! तुमने महान दुष्कर कार्य किया है। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ।'
स्थूलभद्र से इस प्रकार गुरु के विशेष प्रसन्न होने तथा उनके कार्य को अधिक कठिन बताने से अन्य मुनियों के मन में ईर्ष्याभाव उदित हुआ। __आगामी चातुर्मास का समय होने पर सिंह की गुफा में चातुर्मास करने वाले मुनि ने इस बार कोशा के यहाँ चातुर्मास व्यतीत करने की आज्ञा माँगी। गुरु ने उसकी असमर्थता को जानते हुए आज्ञा नहीं दी। किन्तु वह बिना आज्ञा ही कोशा के घर चला गया।
परिणाम जो होना था, वही हुआ। उस मुनि में स्थूलभद्र जितना चारित्र-बल नहीं था । कोशा के रूप-लावण्ययौवन को देखकर उसका चित्त सम्हाले न सम्हला और वह कोशा से भोग की कामना करने लगा। __ कोशा श्राविका बन चुकी थी। धर्म के महत्व को जान चुकी थी। वह धर्म से विचलित नहीं हुई। मुनि को शिक्षा देने की दृष्टि से उसने कहा___"आप मुझे एक लाख मुहरें दें, तब मैं आपकी बात स्वीकार करूं।"
"अरे, हम तो मुनि हैं । एक लाख मुहरें कहाँ से लाएँ ?"
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