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४२ | सोना और सुगन्ध का प्रयास किया, बड़े हाव-भाव दिखाए, रूठी भी और अनुनय भी को। किन्तु उसका प्रेमी स्थूलभद्र तो अब था ही कहाँ जो उसके रूप-यौवन और शृंगार पर रीझता या उसके अनुनय-विनय पर पसीजता? __वहाँ तो अब थे मुनि स्थूलभद्र, जो अपनी साधना और मुनि-जीवन की पवित्रता में हिमालय की भाँति अडिग थे। जो जान चुके थे कि भोग कितने दुःखदायी हैं। उनमें कैसा विष भरा है !
कोशा थक गई । वह हार गई। मुनि तन से ही नहीं, मन से भी अविचलित रहे। . और कोशा की इस हार में ही उसके जीवन की सबसे बड़ो जीत छिपी हुई थी। मुनि ने उसे जीवन का सच्चा मार्ग दिखाया और वह शुद्ध हृदय से उस मार्ग पर चल पड़ी। कोशा एक वेश्या थी। अब वह एक सच्ची श्राविका बन गई। .. चातुर्मास समाप्त हुआ। चारों मुनि अपने-अपने स्थान से चलकर गुरु के पास पहुँचे । सिंह को गुफा, सर्प के बिल तथा कुएँ की मेंड़ पर चातुर्मास करने वाले मुनि जब आये तो उन्होंने 'कृत दुष्करा' कहा, अर्थात्-'हे मुनियो ! तुमने दुष्कर कार्य किया है।'
किन्तु जब स्थूलभद्र आये तब गुरु ने खड़े होकर उनकी
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