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________________ ४० | सोना और सुगन्ध किन्तु भविष्य के गर्भ में क्या-क्या छिपा है, यह कौन जान पाता है ? शकटार की मृत्यु हुई। राजा ने श्रियक से कहा"अपने पिता के स्थान पर तुम मन्त्री बन जाओ।" श्रियक ने उत्तर दिया "राजन् ! आपकी असीम कृपा। किन्तु स्थूलभद्र मेरे बड़े भाई हैं। उन्हें ही आप उस पद पर आसीन करें।" . किन्तु स्थूलभद्र तो अब किसी अन्य पद पर आसीन होने वाले थे-ऐसे उच्च और पवित्र पद पर, जिसे प्राप्त करने के लिए जन्म-जन्म तपस्या करनी पड़ती है । स्थूलभद्र के हृदय में पिता की मृत्यु के संवाद से एक निराला ही परिवर्तन आया। उसकी सोई हुई, रागमत्त आत्मा प्रबुद्ध हो गई थी। उसने सांसारिक भोग-विलास की तुच्छता और असारता को समझ लिया था। वैराग्य ने उसके आत्मकमल को विकसित कर दिया था और भोग का पाप-पंक नीचे रह गया था। - स्थूलभद्र ने एक ही झटके से संसार के बन्धन को काट कर दीक्षा ग्रहण कर ली। साधना चलती रही । विचरण होता रहा। आत्मा का मैल तपस्या के निर्मल जल से धुलकर छूटता रहा । स्थूलभद्र साधुत्व के उच्च से उच्चतर शिखर पर चढ़ते रहे। एक बार अपने गुरु के साथ विचरण करते हुए वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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