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________________ अपने पैरों आप कुल्हाड़ी | ३७ पधारे ? मुनि जीवन आपको पुण्योदय से प्राप्त हुआ है। आपका जीवन धन्य है।" राजा ने इसी प्रकार की बातें तीन बार इस प्रयोजन से कहीं कि अनगार की आत्मा जाम जाय; किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ । अनगार ने इन बातों को सुनकर अरुचि से मुह फेर लिया। यह देखकर राजा से स्पष्ट पूछा"क्या भोगों से प्रयोजन है ?" "हाँ, है।"-स्पष्टतापूर्वक अनगार ने भी उत्तर दे दिया। वस्तुस्थिति का विचार कर राजा ने तुरन्त कण्डरोक के राज्याभिषेक की तैयारी की और देखते-देखते ही कण्डरीक अनगार से राजा बन गया। और राजा पुण्डरीक ने सब कुछ त्याग दियातृणवत् ! पंचमुष्टिक लोचन कर उन्होंने स्वयं ही चातुर्याम धर्म अंगीकार कर लिया और अभिग्रह धारण किया "स्थविर भगवन्त को वन्दन-नमस्कार करने और उनसे चातुर्याम धर्म अंगीकार करने के पश्चात ही मुझे आहार कल्पता है।" . यह अभिग्रह धारण कर पुण्डरीक नगरी से बाहर स्थविर भगवन्त को खोजने निकल पड़े। राजा कण्डरीक आकण्ठ भोग-विलास में डूब गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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