SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने पैरों आप कुल्हाड़ी | ३५ कण्डरीक अनगार स्वस्थ भी हो गए। उनकी स्वस्थता के उपरान्त स्थविर भगवन्त पुन: ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अन्यत्र विचरण करने लगे। केवल कण्डरीक अनगार आज्ञा लेकर उसी नगरी में कुछ समय के लिए ठहर गए। ... राजा के यहाँ से प्राप्त होने वाले सुस्वादु भोजन और विश्राम का प्रभाव कण्डरीक अनगार पर कुछ ऐसा हुआ कि उनमें शिथिलाचार आ गया। अब उन्हें तपस्या के स्थान पर सुख-भोग ही अच्छा लगने लगा। उनकी आत्मा में असावधानी आ गई थी। .. राजा ने जब यह स्थिति देखी तो वह दुःखी हुआ। अनगार को जाग्रत करने की दृष्टि से वह उनके पास आकर कहने लगा.... "बड़े भाग्य से, बड़े पुण्योदय से आपको मनुष्य जन्म का यह सुन्दर फल मिला है। हम लोग तो अभागे ही हैं जो कि सांसारिक सुख-भोगों में लिप्त हैं । आप ज्ञानी हैं। आपने इनका त्याग कर दिया है। हम अज्ञानी हैं कि उन्हें छोड़ नहीं पाए।" . ___ अनगार को यह बात प्रिय नहीं लगी । उनका मन तो डिग चुका था। किन्तु बार-बार राजा ने जब इन बातों को दुहराया, तब इच्छा न होते हुए भी उन्हें उस नगरी से विहार करने का ही निश्चय करना पड़ा। विहार कर वे पुन: स्थविर के पास चले आये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy