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दस्युराज रोहिणेय | ३१ रोहिणेय भगवान महावीर की प्रवचन सभा में पहुँचा। भगवान प्रवचन कर रहे थे कि किसी भी प्राणी को न सताओ। जो दूसरों को सताता है वह भी सताया जाता है।
भगवान के पवित्र उपदेश से रोहिणेय का अज्ञान दूर हो गया। उसने सभा में खड़े होकर निवेदन कियाभगवन् ! मैं पवित्र जीवन जीना चाहता हूँ।
श्रेणिक सम्राट ने अभयकुमार की ओर देखकर कहा---यह तो वही व्यक्ति है जिसे हमारे अनुचरों ने बन्दी बनाया था । लगता है यह बहुत ही धर्मात्मा है। सम्राट ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि उस व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए कहा-मेरा नाम रोहिणेय है। मेरे नाम से राजगृह से आबाल-वृद्ध सभी परिचित हैं। मैंने राजगृह निवासियों को अत्यधिक तंग किया है। मैंने लाखों की ही नहीं अपितु करोड़ों की सम्पत्ति चुराई है। शासन भी मेरी काली छाया से काँपता है। अभयकुमार जैसे बुद्धि के निधान भी मुझे पकड़ने में असमर्थ रहे, पर भगवान आज आपने मुझे पकड़ लिया है ।
रोहिणेय ने श्रोणिक सम्राट की ओर मुड़कर कहाराजन् ! आप महामात्य अभयकुमार को मेरे साथ प्रेषित कीजिए, मैं अपना सारा गड़ा हुआ निधान उन्हें बता दूंगा जिससे वे, जिनका है, उन्हें लौटा सकें।
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