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३० / सोना और सुगन्ध हुआ है। कृपया आप हमारी जिज्ञासाओं का समाधान कीजिए। आपने पूर्वजन्म में ऐसे क्या कर्म किये हैं। क्या आपने चोरी की, डाका डाला, मानवों को कष्ट दिये, या किसी को मारा-पीटा ? क्योंकि ऐसे कार्य करने वाला ही तो स्वर्ग में जन्म ग्रहण करता है।
रोहिणेय यह सभी देखकर विस्मित था। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह क्या है । उसने महल की ओर देखा और सामने खड़ी अप्सराओं की ओर देखा। उसी समय उसे श्रमण भगवान महावीर की वाणी स्मरण हो आई। इनके नेत्र तो अनिमेष नहीं है। इनके पाँव भी धरती को स्पर्श कर रहे हैं। लगता है ये स्वर्ग की अप्सराएँ नहीं किन्तु मानवीय युवतियाँ हैं। सम्भवतः यह अभयकुमार की कूटनीति का चक्र है । वह सँभल गया। उसने कहा-मैं दुर्गचण्ड हूँ, शालिग्राम का रहने वाला हूँ, मैं मरा नहीं हूँ। मैं तो मनुष्य लोक में ही हूँ। __ गुप्तचर ने सारी बात अभयकुमार से कही । अभयकुमार ने स-सम्मान उसे शालिग्राम भिजवा दिया।
रोहिणेय का हृदय परिवर्तित हो गया। उसने सोचामहावीर के कुछ शब्दों ने भी मेरे जीवन को बचा लिया। मेरे पिता ने उनकी वाणी सुनने की मनाई की, वह उचित नहीं है। मैं भगवान के पास जाऊँ और उनके पावन प्रवचनों को सुनू ।
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