________________
दस्युराज रोहिणेय | २६ यदि आप श्री को मेरी बात में शंका हो तो आप जाँच करा सकते हैं।
सम्राट ने अभयकुमार की ओर संकेत किया । अभयकुमार ने सम्राट् के संकेत को समझकर एक गुप्तचर शालिग्राम भेजा। उस दिन सभा विजित कर दी।
शालिग्राम को जनता को रोहिणेय समय-समय पर अर्थ सहयोग देता था। उनके मनोरथों की पूर्ति करता था, अत: रोहिणेय ने जो कहा था शालिग्राम के निवासियों ने उसका समर्थन किया । साक्ष्य के अभाव में रोहिणेय को मुक्त कर दिया गया । अभयकुमार ने उससे क्षमा याचना करते हुए मैत्री का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। रोहिणेय ने कहा-इससे बढ़कर और आनन्द क्या हो सकता है ! दोनों मैत्री के सूत्र में बँध गये।
रोहिणेय का भोजन महामात्य अभयकुमार के वहाँ पर था। अभयकुमार के प्रशिक्षित रसोइये ने बढ़िया भोजन में ऐसा मादक पदार्थ डाल दिया जिससे वह भोजन करते-करते बेसुध हो गया । अनुचरों ने उसे उठाकर एक नव्य-भव्य भवन में सुला दिया। कुछ समय के पश्चात् जब मादक द्रव्यों का नशा उतरा तो उसे ध्यान ही नहीं आया कि वह कहाँ है ? क्या वह स्वप्न देख रहा है या अन्य । मधुर-मधुर सुवास से उसका मन मुग्ध हो गया। सुन्दर अप्सराएँ आईं । प्रणाम कर कहा-यह स्वर्ग है। यह देखिए स्वर्गीय वैभव । आपका अभी यहाँ पर जन्म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org