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________________ दस्युराज रोहिणेय | २७ छत्रछाया में सभी प्रकार से आनन्द है किन्तु रोहिणेय की काली करतूतों से हम अत्यधिक परेशान हो गये हैं । यदि उसका उपद्रव शान्त न हुआ तो हमें राजगृह नगर छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ेगा । सम्राट् श्रेणिक का चेहरा तमतमा उठा । उसी समय कोतवाल को बुलाकर श्रेणिक ने उपालम्भ देते हुए कहायह तुमने क्या पोल चला रखी है । मेरी प्रजा परेशान है और तुम सुख की नींद सो रहे हो । कोतवाल ने काँपते स्वर में कहा- राजन् ! मैंने उसे पकड़ने के अनेकों प्रयत्न किये हैं, पर खेद है कि मैं उसे पकड़ने में सफल न हो सका । यदि महामात्य अभयकुमार मेरा मार्ग-दर्शन करें तो सम्भव है सफलता प्राप्त हो जाय । अभयकुमार ने दस्युराज को पकड़ने का कार्य अपने हाथ में लिया और उसी समय एक गुप्त योजना बनाई । रात्रि में नगर के सभी दरवाजे खुले रखे गये । पहरेदार अट्टालिकाओं में छिप गये । मध्य रात्रि में रोहिणेय ने दक्षिणी द्वार से नगर में प्रवेश किया । छिपे हुए प्रहरियों ने उसे पकड़ लिया । उसे रूप परिवर्तन करने का और वहाँ से भाग निकलने का अवसर ही नहीं मिला । नगररक्षक ने प्रातःकाल चोर को सम्राट् के सामने प्रस्तुत किया। चोर को देखते ही सम्राट् की भृकुटी तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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