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________________ २६ | सोना और सुगन्ध प्रवचन-स्थल के पास पहुँचते ही उसने चलने की गति तेज कर दी और कानों में अँगुलियाँ डाल लीं । पर नियति को यह कहाँ मान्य था ? उसके दाएँ पैर में एक नुकीला काँटा चुभ गया। उसके पैर लड़खड़ाने लगे। गति में शिथिलता आ गई। उसके अन्तर्मानस में भय था कि पीछा करने वाले कहीं आकर पकड़ न लें। बिना काँटा निकाले तेज दौड़ना सम्भव नहीं था। काँटा निकालने के लिए कानों से अंगुलियाँ निकालना आवश्यक था, और अंगुलियाँ निकालने पर महावीर-वाणी सुनने का खतरा था। उसने कानों से अँगुलियाँ हटाईं और काँटा निकाला। उस समय भगवान महावीर देवता के सम्बन्ध में चर्चा कर रहे थे- 'देवता के नयन अनिमेष होते हैं, उनके पैर भूमि से चार अंगुल ऊपर रहते हैं।' भगवान के ये शब्द उसके कानों में गिर गये। वह शीघ्र ही कानों में अंगुलियाँ डालकर फिर दौड़ा। महावीर के शब्दों को भूलने का वह प्रयास करने लगा; पर यह नियम है कि जिसे भूलने का प्रयास किया जाता है, वह कभी भी भूला नहीं जाता। उसकी धारणा और भी अधिक पुष्ट हो जाती है । रोहिणेय के कर्ण कुहरों में महावीर की वाणी गूंजती रही। दिन-प्रतिदिन रोहिणेय का आतंक बढ़ता जा रहा था। नागरिक उससे परेशान थे, वे सभी सम्राट् श्रेणिक के पास पहुँचे। सम्राट् ने उनसे कुशल-क्षेम पूछा। नागरिकों ने नम्र निवेदन करते हुए कहा-आपकी पवित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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