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दस्युराज रोहिणेय | २५ न कभी उसके पास जाना और न कभी उसका उपदेश ही सुनना।
रोहिणेय ने सहर्ष पिता के अन्तिम आदेश को शिरोधार्य किया। लोहखुरो ने संसार से विदा ली। ___रोहिणेय तस्कर-कृत्य में पिता से भी आगे बढ़ गया। उसने कुछ विद्याएँ प्राप्त की। रूप-परिवर्तनी विद्या से वह देखते-ही-देखते रूप बदल देता था और गगन-गामिनी पादुका को पहनकर आकाश में उड़ जाता था। उससे राजा, मन्त्री, आरक्षीदल व नगरवासी सभी परेशान थे। सभी की आँखों में रोहिणेय धूल झोंक देता था । राजगृह की जनता उससे भयभीत हो रही थी। वह दिन दहाड़े चोरी कर लेता था। बड़े-बड़े धनपति उसके नाम से काँपते थे। आरक्षीदल के सभी प्रयत्न निष्फल हो गये, चोर पकड़ में नहीं आया । ___ मध्याह्न का समय था। रोहिणेय एक घर में चोरी करने के लिए घुसा। वह धन को ले जाने का प्रयास कर रहा था, कि आसपास के लोग एकत्र हो गये। कोलाहल को सुनकर रोहिणेय वहाँ से भागा, पर शीघ्रता में वह गगन-गामिनी पादुकाएँ वहीं भूल गया। वह जिस मार्ग से जा रहा था, उसी मार्ग के पास भगवान महावीर प्रवचन कर रहे थे। वह भगवान की वाणी सुनना नहीं चाहता था। उसे अपने पिता के आदेश का पालन करना था।
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