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दस्युराज रोहिणेय
राजगृह का प्रसिद्ध दुर्दान्त दस्यु लोह-खुरो जीवन की अन्तिम घड़ियाँ गिन रहा था। उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र रोहिणेय से कहा-वत्स ! अब मैं संसार से विदा हो रहा हूँ, मेरी अन्तिम इच्छा है कि हमारा महान शत्रु श्रमण महावीर है, जो यदा-कदा राजगृह में आता रहता है उसके पास न जाना और न उसकी वाणी ही सुनना ।
पिताजी ! महावीर तो बड़े प्रभावशाली व्यक्ति हैं। राजगृह के सम्राट से लेकर बड़े-बड़े श्रेष्ठी लोग उनके नाम पर मन्त्रमुग्ध हैं।
पुत्र ! बात सही है, पर वह हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। एक बार हमारे साथी उसके पास गये, पर जब लौटे तो चोर नहीं रहे। राजा श्रेणिक चोरों को बन्दी बना सकता है किन्तु वह अचोर नहीं बनाता लेकिन महावीर के सम्पर्क में आने पर चोर भी अचोर हो जाता है। उसका यह प्रयास हमारे कुलधर्म पर कुठाराघात करता है, अतः मैं तुम्हें सावधान करता हूँ कि उससे बचकर रहना ।
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