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२० / सोना और सुगन्ध हो गई। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह किस की करामात है। उसने अपने जीवन में आज दिन तक किसी को भी दुश्मन नहीं बनाया । सभी के साथ उसने भलाई की है, फिर यह यकायक आपत्ति कैसे आ गई ? लम्बे समय तक चिन्तन करने के पश्चात उसे स्मरण आया कि कल मैंने अवश्य ही दन्तिल को बुरी तरह से डाँटा था। लगता है यह उसी का चमत्कार है। छोटा-सा काँटा भी चलते हुए व्यक्ति को रोक देता है। प्रधानमन्त्री ने अपने पुत्र को बुलाकर सारी स्थिति बताई। पिता के निर्देश के अनुसार बहुत सारे थाल मिठाइयों के, मेवे के और वस्त्राभूषणों के भरकर वह दन्तिल के घर पहुँचा। दन्तिल अमात्यपुत्र को अपने यहाँ आया देखकर हर्ष से नाच उठा । वह अपनी बुद्धि पर मन-ही-मन प्रसन्न हो रहा था । उसने अमात्यपुत्र का स्वागत करते हुए कहाआपका पधारना किसलिए हुआ है । आप आदेश देते, मैं वहीं पर उपस्थित हो जाता।
अमात्यपुत्र का सिर लज्जा से झुक गया। उसने कहादन्तिल ! तुम्हारा और हमारा घर का सम्बन्ध है । विवाह के प्रसंग पर मिठाइयाँ आदि बाँटी गईं। अन्य स्थानों पर अन्य लोग गये, और मैं तुम्हारे यहाँ आया हूँ।
अमात्यपुत्र के स्नेह-स्निग्ध शब्दों को सुनकर दन्तिल पानी-पानी हो गया उसका क्रोध कपूर की तरह उड़ गया।
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