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१८ | सोना और सुगन्ध डाँटने लगी। मैं कब राजा की न्यायप्रियता और उदारता की निन्दा कर रहा हूँ। मैं तो कह रहा हूँ कि राजा बहुत ही भोला-भाला है और जमाना है चतुर व चालाकों का। उसने अपना सारा कार्यभार प्रधानमन्त्री के जिम्मे कर रखा है। वह दिन कहता है तो दिन और रात कहता है तो रात । क्या कभी इस प्रकार राज्य-व्यवस्था चलती होगी । जिसके हाथ में सत्ता आ जाती है वह क्या नहीं कर सकता ? आजकल प्रधानमन्त्री राजा के विश्वास का अनुचित लाभ उठा रहा है। पुत्र के विवाह के बहाने वह शासन-सूत्र को ही बदलने का षड्यन्त्र कर रहा है । राजा के वरिष्ठ अधिकारी कई दिनों से उसके यहाँ गुलछ” उड़ा रहे हैं। वे क्या कभी नमकहराम हो सकते हैं। प्रधानमन्त्री राजनीति विशारद है। वह किसी को प्रलोभन देकर और किसी को पदोन्नति कर अपनी ओर आकर्षित कर रहा है । शस्त्र-अस्त्र भी सँवारे जा रहे हैं। विवाह के बहाने शासन को उलटने का उपक्रम किया जा रहा है। राजनीतिज्ञों का कोई भी विश्वास नहीं है। वे कब क्या करेंगे, कुछ भी पता नहीं है। ___ महतरानी-पतिदेव ! आज चुप रहें, आपको क्या लेनादेना ? यदि किसी ने भी कुछ सुन लिया तो लेने के देने पड़ जायेंगे। राजा तो इसलिए आपसे नाराज होगा कि आपने उसकी निन्दा की, और प्रधानमन्त्री इसलिए ऋद्ध होगा कि आपने उसके गुप्त षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर दिया।
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