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________________ बुद्धि का चमत्कार ! १७ पर कार्य करता हूँ तो इसका यह अर्थ तो नहीं कि मैंने अपना स्वाभिमान ही बेच दिया है। प्रधानमन्त्री यदि यह समझते हैं कि मैं छोटा हूँ इसलिए क्या कर सकता हूँ, तो मैं भी उन्हें बता दूंगा कि छोटा जो कर सकता है, वह बड़ा भी नहीं कर सकता। दन्तिल अपमान का घूट पीकर प्रधानमन्त्री के आवास से बाहर निकल गया। दिन भर विचार-सागर में डुबकियाँ लगाता रहा, रातभर उसे नींद भी नहीं आई। प्रातः होते ही वह राजप्रासाद में अपनी पत्नी के साथ सफाई के लिए पहुँच गया। कुछ देर कार्य करने के पश्चात वह विश्राम लेने के लिए एक ओर बैठ गया। दन्तिल की पत्नी भी उसके पास ही आकर बैठ गई। दन्तिल ने वार्तालाप प्रारम्भ करते ही कहा-रामू की माँ ! अपना राजा तो मूर्ख राज शिरोमणि है। उसे शासन-संचालन को पद्धतियाँ भी परिज्ञात नहीं हैं। __ महतरानी ने बात को काटते हुए कहा--पतिदेव ! आगे न बोलो, बात करनी हो तो जरा होश से करो। अपना राजा सूर्य की तरह तेजस्वी है, चन्द्र की तरह सौम्य है और कुबेर की तरह दानी तथा धर्मराज की तरह न्याय-प्रेमी है। ऐसे महान राजा की आप निन्दा कर रहे हैं । भविष्य में कभी भी भूलकर निन्दा की तो मैं जबान खीच लगी। ____महतरानी की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि दन्तिल ने कहा-मेरी वात पूरी सुने बिना ही तू बीच में ही मुझे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003182
Book TitleSona aur Sugandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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