________________
१५ | सोना और सुगन्ध प्रकार छह महीने तक भयंकर से भयंकर कष्ट देने पर भी वे कभी भी ध्यान से विचलित नहीं हुए और उन्होंने अपने सम्पूर्ण कर्म नष्ट कर दिये। केवलज्ञान और केवलदर्शन का अद्भुत प्रकाश जगमगा उठा, आकाश में देव-दुन्दुभी गड़गड़ाने लगी-धन्य हो ध्यानमूर्ति, क्षमा के अवतार दृढ़प्रहारी मुनि को।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org