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१२ | सोना और सुगन्ध डाला। गाय गर्भवती थी। छटपटाता हुआ गर्भ बाहर निकल आया । वड़ा ही करुण दृश्य था, एक ओर ब्राह्मणी पड़ी थी, दूसरी ओर ब्राह्मण, और तीसरी ओर गाय और उसका बच्चा तड़प रहा था। खून से सारा घर रंग गया था।
दृढ़प्रहारी का अत्यन्त क्रूर हृदय भी उस वीभत्स दृश्य को देखकर द्रवित हो उठा । वह सोचने लगा, 'अरे क्रोध में मैंने यह क्या अनर्थ कर डाला। मैंने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था। मैंने नारी-हत्या, ब्राह्मण-हत्या और गौहत्या जैसे निकृष्ट कार्य करते समय भी संकोच नहीं किया। भयंकर भूल मैंने की थी और उसने मुझे सत्य शिक्षा दी थी; पर मैंने क्रोध में पागल बनकर कितना भयंकर अनर्थ कर दिया। मेरे से अच्छी गाय थी जिसने अपने स्वामी के लिए प्राणोत्सर्ग कर दिया। मेरे में इतना भी विवेक नहीं। हाय ! अधमता की भी मैंने पराकाष्ठा कर दी।' उसने तलवार वहीं पर डाल दी और मुनि वेष धारण कर श्रमण बन गया। __ वह चिन्तन करने लगा कि एकान्त शान्त स्थान में जाकर ध्यान करने की अपेक्षा मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं नगर के द्वार पर खड़े रह कर ध्यान करू, क्योंकि मैंने इस नगर के सैकड़ों व्यक्तियों को मारा है, सैकड़ों युवतियों के सुहाग को लूटा है, सैकड़ों माताओं की गोद सूनी की है । लाखों करोड़ों की सम्पत्ति का अपहरण कर हजारों
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