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ध्यानयोगी दृढ़प्रहारी मुनि
[तस्कर से साधु]
दृढ़प्रहारी तस्करों का अधिपति था। उसका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था, उसके पिता धर्मिष्ठ व नीति, निपुण थे, किन्तु कुसंगति के कारण दृढ़प्रहारी मद्य-मांस का सेवन करने लगा, चोरी और व्यभिचार के चंगुल में फंस गया। पिता ने उसे अनेक उदाहरण देकर समझाया किन्तु उस पर उनका कोई असर न हुआ । एक दिन उसने भयंकर गलती कर दी जिससे पिता ने क्रुद्ध होकर उसे घर से बाहर निकाल दिया । और वह एक जंगल से दूसरे जंगल में भटकता हुआ एक तस्कर पल्ली में पहुँच गया । चोरी करने की कला में वह बहुत ही निपुण था अतः वह पल्लीपति का आदरपात्र बन गया। उसके दृढ़ साहस, प्रबल पराक्रम और प्रहार की अचूकता को देखकर पल्लीपति ने उसका नाम दृढ़प्रहारी रखा और उसे पुत्रवत् प्यार करने लगा। पल्लीपति का निधन हो जाने के बाद वह सभी तस्करों का अधिपति बन गया। सारे तस्कर उसी के निर्देश से कार्य करने लगे।
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