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नारी नहीं, नारायणी | ७ ही स्वादिष्ट लगी। ऐसी स्वादिष्ट खीर तो मैंने अपने जीवन में प्रथम बार खाई थी, किन्तु माँ खाते समय ध्यान न रहा और एक मक्खी मुंह में चली गई। परिणामस्वरूप वमन हो गई।
उस बहिन ने पूछा--फिर तेने क्या किया ?
माँ ! मैंने उस वमन को पुनः चाट लिया, इतनी बढ़िया वस्तु को मैं निरर्थक कैसे जाने देता-लड़के ने कहा ।
बहिन-शाबाश बेटे ! शाबाश ! मुझे तेरी बुद्धि पर अत्यधिक गर्व है। तू सयाना है कभी भी अच्छी चीज को निरर्थक नहीं जाने देता । बेटा ! भविष्य में भी यदि कभी ऐसा मौका आ जाए तो इसी तरह से ध्यान रखना। ___ माँ-बेटे के पारस्परिक वार्तालाप को सुनकर भावदेव मुनि विक्षुब्ध हो उठे। उनके मन में बहुत ही ग्लानि हुई। मन में विचारने लगे कि ये माँ-बेटे कितनी अधम प्रकृति के हैं । पहली बात तो यह है कि वमन की हुई वस्तु को कोई खाता नहीं है, कौवे और कुत्ते भी उसे खाना कम पसन्द करते हैं। यदि किसी ने खा भी लिया है तो कोई प्रशंसा नहीं करता; पर यह माँ कैसी है, जो प्रशंसा के पुल बाँधती चली जा रही है । अन्त में भावदेव मुनि से नहीं रहा गया। उन्होंने उसे फटकारते हुए कहा-'तुम्हें लज्जा नहीं आतो, इतने निकृष्ट कार्य करने वाले पुत्र की प्रशंसा कर रही
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