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२२ सोना और पत्थर
एक राजा को अपना खजाना भरने का शौक लगा। प्रजा पर कर बढ़ाया और सोना खरीद-खरीद कर अपना खजाना भरने लगा। राजा का खजाना बढ़ता गया और कर-भार से प्रजा की कमर टूटने लगी। प्रजा में हाहाकार मच गया।
बुद्धिमान मंत्री ने विचार किया कि सीधे कहने से तो राजा मानेगा नहीं, किसी युक्ति से ही समझाया जाए। मन्त्री ने मन-ही-मन एक योजना बनाई और एक दिन राजदरबार में नहीं पहुँचा । जब दूसरे दिन पहुँचा तो राजा ने एक दिन अनुपस्थित रहने का कारण पूछा । मन्त्री ने बताया---
"महाराज ! कल एक जरूरी काम में फंस गया था।" "ऐसा क्या जरूरी काम था ?" राजा ने पूछा । मन्त्री ने बताया--
"महाराज ! मैं अपना खजाना भरवाने के काम में लगा था।"
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