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सत्य-असत्य की मिलावट | १२५ मन बड़बड़ाया—'अब ग्राहकों को माल बेचने में कितनी सुविधा रहेगी। धी माँगें या तम्बाकू--एक ही टोन में से दे दिया जायेगा, दोनों का एक ही भाव तो है।'
तम्बाकू का एक ग्राहक आया। लड़के ने घी मिला तम्बाकू दिखाया । ग्राहक ने नाक-भौं सिकोड़कर पूछा
"यह कैसा तम्बाकू है ? घी है या तम्बाकू ?" लड़के ने कहा
"बहुत बढ़िया तम्बाकू है। लेना हो लो, नहीं तो आगे बढ़ो।"
ग्राहक लड़के को खरी-खोटी सुनाता हुआ आगे बढ़ गया। थोड़ी ही देर बाद एक घी का ग्राहक आया । उसने तम्बाकू मिला घी देखा तो बोला
"यह तम्बाकू दे रहे हो या घी ?" लड़के ने समझाया
"भाई, घी भी है और तम्बाकू भी। दोनों का एक ही भाव है । जैसा चाहो प्रयोग करना। यह घी का भी काम देगा और तम्बाकू का भी।"
ग्राहक बड़बड़ाता हुआ चला गया।
इसी तरह शाम तक अनेकों ग्राहक आये। सेठ के लड़के का सभी से झगड़ा हो गया। झल्लाते हुए उसने दुकान बन्द कर दो और पिता का इन्तजार करने लगा। गाँव से जब उसका पिता लौटा तो बेटे से पूछा
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