________________
१२६ / सोना और सुगन्ध
"बेटा ! कुछ बिक्री हुई या नहीं ?" बेटा तो भरा बैठा था। बिगड़कर बोला
"पिताजी ! आपने सब ग्राहकों की आदतें बिगाड़ दी हैं । जानें आप कैसे माल बेच देते हैं ? मुझसे तो सभी ग्राहकों ने झगड़ा किया। आज माल खरीदने एक भी नहीं आया, सबके सब मुझसे झगड़ा करने ही आये थे।" व्यापारी का माथा ठनका । पुत्र से बोला
"बेटा ! ग्राहक तो ऐसे झगड़ालू नहीं थे। कहीं-नकहीं तुझसे भूल हुई है।"
पुत्र ने बिगड़कर कहा
"पिताजी ! कल मैं आपके साथ दुकान पर बैठूगा। फिर देखूगा कि आप कैसे माल बेचते हैं। आज किसी ने माल पसन्द नहीं किया। उल्टे मुझे ही खरी-खोटी सुनाई।"
सेठ मन-ही-मन गुत्थी सुलझाता रहा । पर कोई भी कारण समझ में नहीं आया। दूसरे दिन पिता-पुत्र दोनों दुकान पर बैठे। सेठ ने दुकान का निरीक्षण किया। घी का खाली टीन देखा तो पूछा
"माल कुछ भी नहीं बिका, लेकिन इस कनस्तर का घी कहाँ है ?"
पुत्र बोला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org