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ढोंग देखकर बन्दर रोया | १२१ शेर ने गंभीर मुद्रा बनाकर कहा
"भैया बन्दर ! पूरा जीवन हिंसा और पाप करते बीत गया। अब जीवन का उत्तरार्ध तो सुधार लू। जमीन पर सैकड़ों छोटे-मोटे जीव रहते हैं। कहीं किसी जीव की हिंसा न हो जाए इसीलिए आहिस्ता-आहिस्ता फूंक-फूक कर चल रहा हूँ। भैया ! अब तो चींटी के मरने से भी मन में दुःख होता है।"
इस साधु-शेर को देखकर बन्दर श्रद्धा से झुक गया। सोचा, 'इस महात्मा के चरण छूकर अपना जीवन सफल कर लू ।' बन्दर नीचे उतर कर शेर के निकट आकर चरणों में झुका। शेर तो अवसर की ताक में ही था, झट से बन्दर को मुंह में भर लिया।
बन्दर ने सोचा, 'साधु वेश के कारण ठगा गया । अब तो मौत निश्चित है। पर मरते-मरते भी यदि बचने का उपाय कर लू तो हानि क्या है ?' विचार करते ही वन्दर ठहाका मार कर हँसा। बन्दर के इस असामयिक अट्टहास पर शेर को बड़ा आश्चर्य हुआ। बन्दर से पूछा
"क्यों रे मूर्ख ! अब तू पूरी तरह से काल के मुंह में है। मरने के समय भी तू हँस रहा है ?"
बन्दर ने कहा
"वनराज ! मूर्ख मैं नहीं तुम हो, जो ऐसे अवसर को खो रहे हो। इस समय जो मेरी तरह ठहाका मारकर हंसेगा, वह सीधा स्वर्ग जायेगा।"
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