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ढोंग देखकर बन्दर रोया
किसी जंगल में एक बूढ़ा शेर रहता था। भाग-दौड़ कर शिकार करने की शक्ति उसमें नहीं थी। आस-पास ही कोई शिकार मिल जाए तो मारकर खा लेता। लेकिन उसके भक्ष्य वनजीव तो उसकी गन्ध से कोसों दूर छिपे रहते।
एक बार शेर को तीन-चार दिन तक कोई शिकार नहीं मिला । शेर ने सोचा, 'साधु का ढोंग रचू तो सभी जीव-जन्तु मेरे पास आने लगेंगे और मैं तीन-चार दिन की भूख को शान्त कर लूगा।' यह सोच शेर जमीन को फूकफूक कर कदम रखने लगा। वह इतने धीरे-धीरे कदम रखता कि चींटी भी यदि पैर के नीचे आ जाए तो मरे नहीं। पेड़ पर बैठे एक शाखामृग-बन्दर ने देखा तो कुतूहलवश पूछ बैठा__ "जंगल के राजा ! आज यह उल्टी चाल कैसे ? धरती पर फूक-फक कर कदम क्यों रख रहे हो? कदम भी इतने धीरे कि बताशा भी न फूटे।"
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