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पाप का घड़ा | ११६
धनी सेठ की आँखों के सामने अँधेरा छा गया"प्रभो ! यह तूने क्या किया ? मैं दीन-दुनिया - दोनों से गया । भगवन् ! तेरे दरबार में झूठा सच्चा क्योंकर हो गया ।"
इसी घबराहट में धनी सेठ के हाथ से घड़ा छूट पड़ा । घड़े में भरा अनाज बिखर गया और अनाज में छिपे गहने सबकी आँखों में चमकने लगे ।
सभा में सन्नाटा था। शोर-गुल बन्द हो चुका था । गम्भीर आवाज में सबने कहा
"पाप का घड़ा ऐसे ही फूटता है । सच्चाई सामने आने में देर है, पर अन्धेर नहीं । आखिर झूठा, झूठा ही रहा और सच्चा, सच्चा रहा ।
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