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११८ | सोना और सुगन्ध
हैं तो लोहे का बहकता गोला हाथ में लेकर यह सिद्ध करना होगा कि तुम सच्चे हो ।"
ईर्ष्यालु ने कहा
" अवश्य । साँच को आँच कहाँ ?"
अपने हाथ का घड़ा धनी सेठ को देते हुए ईर्ष्यालु ने कहा
"सेठजी ! तनिक देर के लिए मेरा यह घड़ा पकड़ना, मैं पंचों के सम्मुख अपनी सत्यता प्रमाणित करके दिखा दूँ ।"
धनी सेठ को घड़ा देकर ईर्ष्यालु ने सब पंचों और जनता के सम्मुख ऊँची आवाज में कहा
"अगर मैंने सेठ के गहने लौटा दिये हैं और मैं सच्चा हूँ, तो लोहे के इस दहकते गोले से मेरा हाथ नहीं जलेगा ।"
यह कह ईर्ष्यालु ने लोहे का दहकता हुआ गोला हाथ मैं उठा लिया | चमत्कार हुआ कि उस व्यक्ति के हाथ पर वह गोला ऐसे रखा रहा, जैसे वर्फ का ढेला रखा हो ।
चारों ओर से आवाजें आईं
"गरीब बेचारा सच्चा है । धनी सेठ झूठा और बेईमान है ।"
ईर्ष्यालु भी तो यही चाहता था। उसके मन की इच्छा पूरी हुई।
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