________________
उपकारी श्रावक
___ एक श्रेष्ठी-पुत्र प्रतिबोधित हुआ और गुरु के पास दीक्षित हो गया। दीक्षित होते समय मुनि ने सोचा, 'साधनापथ में जा रहा हूँ। महाव्रतों का पालन करके जीवन सफल बनाना है, पर कभी ऐसा भी समय आ सकता है, जब भिक्षा न मिले अथवा दुभिक्ष ही पड़ जाए। ऐसे समय जीवन बचाना मुश्किल हो जाएगा । जब जीवन ही न बचेगा तो महाव्रतों की साधना कैसे होगी। ऐसे आड़े वक्त के लिए कुछ रख लेना चाहिए।' यह सोच मुनि ने एक बहुमूल्य रत्न अपने पास छिपाकर रख लिया।
मुनि ने शास्त्रों का अध्ययन किया। शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता मुनि अब अनेक साधुओं के गुरु बन गए । अपनी परिषद् में जब वे शंकाओं का समाधान करते तो श्रोता साधु श्रद्धावनत हो जाते । सत्य, अहिंसा आदि विषयों पर मुनिवर ऐसा व्याख्यान देते कि श्रोता अभिभूत हो जाते, पूर अपरिग्रह का प्रसंग आने पर मुनि की बोलती बन्द हो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org