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दुर्जेय शत्रु को जीता | १११ कृत-कर्मों का ही फल पाता है। किसी पूर्वभव के वैर के कारण ही इसने तेरे भाई का वध किया है। शत्रु-मित्रसब में समभाव रखना ही उचित है।
"बेटा ! मल से मल नहीं धुलता। वैर से वैर कभी समाप्त नहीं होता। वैर और क्रोध की यह शृंखला अनन्त काल से चली आ रही है। उसका कारण मनुष्य की यही भूल है कि वह वैर से वैर को धोता है। खून के दाग खून के धोने से क्या कभी छुटेंगे? तू इसे मारेगा। इसके पुत्र बड़े होकर तुझे मारेंगे, फिर तेरे पुत्र बड़े होकर उन्हें मारेंगे और वैर की यह परम्परा न जाने कब तक चलती रहेगी.....।"
कुलपुत्र अब भी संशय में था
"माँ ! शत्रु और भाई दोनों ही बराबर हैं ? क्या तू यह मानती है कि यह मेरे भाई का शत्रु नहीं, तेरे पुत्र का हत्यारा नहीं ? मान लो माँ, तेरी तरह सभी अपने शत्रुओं को छोड़ दिया करें तो हत्यारों को, घातकों को कितना प्रोत्साहन मिले ? फिर तो हत्या करने वाला और रक्षा करने वाला दोनों बराबर रहे ? क्या इसके अपराध का दण्ड देना उचित नहीं ? भाई की हत्या करके यह यों ही रह जायेगा ?"
माँ ने कहा"दण्ड ? बेटा-दण्ड देने का अधिकार तुझे नहीं ।
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