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दुर्जेय शत्रु को जीता | १०६ कुलपुत्र ने एक ठहाका मारा
"ओहो, आज तुझे माँ की ममता, पत्नी का वियोग और बच्चों की बेवसी का ध्यान आ रहा है ? आज से बारह वर्ष पहले जब तूने मेरे सोते हुए भाई पर वार किया था, उस दिन का ध्यान कर ले । तूने मेरी माँ को तड़पाया, मुझे बन्धुहीन बनाया—मेरी एक भुजा ही काट ली। आज मैं सबका बदला लेकर ही पानी पीऊँगा।" __ वह फिर गिड़गिड़ाया। उसकी आँखों में बेबसी के आँसू थे। कुलपुत्र के पैर पकड़ते हुए आर्त स्वर में बोला
"नहीं-नहीं ! मुझे मत मारो। मुझे अपना भाई समझकर छोड़ दो। जिन्दगी भर गुण गाऊँगा......"यह अहसान.....।"
क्षत्राणी का हृदय पिघल गया
"छोड़ दो बेटा, छोड़ दो। इसे मत मारो। इसके मारने से तुझे कुछ न मिलेगा।"
आश्चर्यचकित कुलपुत्र ने पूछा
"माँ, यह तू कह रही है ? एक वीरमाता कह रही है, कि शत्रु को छोड़ दो ? मां ! बारह वर्ष तक भूखे-प्यासे रहकर मैंने वन्धुघातक को पकड़ा है, और आज इसे जिन्दा छोड़ दूँ ? माँ ! तुझे क्या हो गया है ? याद कर, तूने मुझे काय र कहा था, मेरे पौरुष को धिक्कारा था। माँ,
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