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१०८ | सोना और सुगन्ध
की ओर । आज उसके पैरों में पंख लगे हुए थे। देखने वालों को तो वह धरती पर चलता दीख रहा था, पर स्वयं वह नहीं समझ पा रहा था कि वह चल रहा है, या उड़ रहा है ।
बाहर से ही कुलपुत्र ने आवाज दी
"माँ s!" और बन्धनयुक्त बन्धुघातक को माँ के चरणों में डालते हुए बोला
"माँ ! यह रहा तेरे पुत्र का हत्यारा । ले यह खड्ग और अपने पुत्र का बदला ले ।"
गर्व का अनुभव करते हुए क्षत्राणी ने कहा"नहीं बेटा, तू ही अपने भाई का बदला ले । आज इसे बता दे कि क्षत्रिय का खून ठण्डा नहीं होता ।"
कुलपुत्र ने वन्धुघातक को ललकारा -
"अरे दुष्ट ! अब तू अपने इष्ट का स्मरण कर ले । अब मीत तेरे सामने खड़ी है....।"
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कुलपुत्र का शत्रु उसी तरह गिड़गिड़ाया, जैसे वधिक के फन्दे में पड़ी गाय रंभाती है
"मुझे मत मारो। मैं तुम्हारी गाय हूँ । मेरे बिना मेरी बूढ़ी माँ रो-रोकर मर जाएगी, मेरी स्त्री बेसहारा हो जाएगी । मेरे छोटे-छोटे बच्चे अनाथ होकर तड़पंगे । मुझे छोड़ दो। जीवनभर तुम्हारा चाकर बनकर रहूँगा ।"
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