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६४ | सोना और सुगन्ध परम पद मिलेगा। अब ज्यादा समय गुजारने से लाभ नहीं । आलस्य में समय खोया तो कुछ भी हाथ न रहेगा। आलसी के सिवा सव मनुष्य अच्छे हैं । मैं आज ही-आज ही क्यों, अभी दीक्षा अंगीकार करूगा। बस, माता-पिता से अनुमति हो तो लेनी है।'
मुनि वचनों से प्रतिबुद्ध राजकुमार पिता के पास आये और मन का इरादा बताते हुए बोले___"पूज्य तात ! मैं अब संयम लेकर आत्म-कल्याण करूंगा।" ___ "क्यों, जीवन के उदयकाल में राजसुखों को त्यागकर संयम लने का विचार तुमने क्योंकर किया ?" पिता ने पूछा।
राजकुमार अरणिक ने कहा
"तात ! राजसुख तो मैं पहले अन्य जन्मों में भी भोग चुका हूँ, पर परमसुख अभी तक नहीं प्राप्त कर सका। अब इस नरभव को परम पुरुषार्थ करके मोक्षपद प्राप्त करने में लगाऊँगा।'
पिता ने समझाया
"वत्स ! तुम्हारा विचार सराहनीय है, पर अभी तुम्हारी अवस्था महाव्रतों का पालन करने की नहीं है। अभी तो तुम्हें विवाह करना है। मेरी तरह राज्य को एक उत्तराधिकारी देना है। कुछ दिन यौवनसुख भोगने
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