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अनुभव से वह तत्काल जाग जाता पर आंख खोलकर देखने पर कुछ भी दिखाई नहीं देता। आज उसे याद आया कि अब मध्यरात्रि का समय होने वाला है। गुप्त प्रकार से कोई आता है या मेरे मन का भ्रम मात्र है-इस का निर्णय करने के लिए वह तलवार लेकर एक कोने में छिप गया।
प्रतीक्षा के क्षण मधुर भी होते हैं और चंचल भी। ___ रात्रि का दूसरा प्रहर पूरा हुआ। महाबल सजग हो गया। एक घटिका बीत गई। पर कहीं कुछ दिखाई नहीं दिया । महाबल ने सोचा, मैंने व्यर्थ ही भ्रम पाल रखा था । इस कक्ष में भला कौन आ सकता है ? मेरा इस प्रकार खड़ा रहना या छिपकर बैठना पागलपन के अतिरिक्त क्या हो सकता है ? यह सोचकर महाबल पुनः शय्या की ओर जाने लगा। इतने में ही उसकी दृष्टि चमक उठी... वातायन से एक कटा हुआ हाथ भीतर आ रहा है, ऐसा उसे आभास हुआ।
शयनकक्ष में मन्द-मन्द प्रकाश था । उस मन्द प्रकाश में महाबल ने स्पष्ट देखा कि यह हाथ है, परन्तु कटा हुआ हाथ है और गतिशील । यह बात समझ से परे थी' 'वह कटा हुआ हाथ धीरे-धीरे पलंग की ओर बढ़ रहा था, यह महाबल ने देखा 'परन्तु यह क्या ? "कटे हुए हाथ में रत्नजटित कंकण हैं... रत्न चमक रहे हैं। क्या यह हाथ किसी स्त्री का है ? यदि यह हाथ किसी स्त्री का हो तो उसका शरीर कहां है ? अकेला हाथ क्यों? क्या यह कोई प्रेतिनी, मायाविनी या डाकिनी है ? यदि वह है तो मेरे शयनकक्ष में उसके आने का प्रयोजन ही क्या है ? ___कटा हुआ हाथ शय्या के पास गया और वहीं स्थिर हो गया। महाबल ने सोचा, मैंने जिसे भ्रम माना था, वह सत्य है। संभव है इस मायाविनी ने ही लक्ष्मीपुंज हार चुराया हो । क्योंकि चुराये जाने पर चोर के कोई निशान प्राप्त नहीं हुए "अभी यह मेरे प्राण लेने ही आया है ''यदि हाथ को यह ज्ञात हो जाए कि शय्या पर कोई सोया हुआ नहीं है, सोये हुए व्यक्ति की प्रतीति मात्र हो रही है, तो संभव है हाथ लौट जाएगा। फिर लक्ष्मीपुंज हार का अता-पता नहीं मिल सकेगा।
ऐसा विचार कर महाबल ने अपनी तलवार म्यान में रखी और हाथ की ओर बढ़ा।
युवराज महाबल ने एक क्षण का भी विलंब किए बिना तत्काल अपने मजबूत हाथों से उस कटे हुए हाथ को पकड़ लिया। ____ कटे हुए हाथ ने जोर से झटका दिया। पर महाबल की पकड़ बहुत मजबूत
थी।
___ और कटे हुए हाथ ने अपनी शक्ति लगाकर महाबल को झरोखे की ओर जाने के लिए विवश कर दिया। महाबल ने सोचा, एक स्त्री के हाथ में इतनी
९० महाबल मलयासुन्दरी
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