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१८. कटा हुआ हाथ
लक्ष्मीपुंज हार को इस प्रकार कौन ले गया होगा? उसे ले जाने वाला कहां होगा? उसको कैसे पकड़ा जाए?—ये सारे प्रश्न युवराज महाबल के हृदय को व्यथित कर रहे थे।
वह जानता था कि यदि लक्ष्मीपुंज हार नहीं मिला तो मां प्राण त्याग देगी। एक ओर स्वयंवर का दिन निकट है और प्रस्थान करना अनिवार्य है तो दूसरी ओर यह नयी चिन्ता उभर आयी है। __ शय्या में सोते हुए महाबल अनेक विकल्पों में उन्मज्जन निमज्जन कर रहा था । उसकी आंखें बंद थीं, पर नींद आ नहीं रही थी। उसने लक्ष्मीपुंज हार की खोज में पूरा दिन बिता दिया था। उसके सारे गुप्तचर दौड़धूप कर हार गए थे। चोर का अता-पता नहीं लग रहा था। विशिष्ट गुप्तचर ने अपनी खोज का निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए कहा-'युवराजश्री ! या तो चोर अति कुशल और मांत्रिक होना चाहिए अथवा हार धरती में समा गया होगा।' ___गुप्तचर के इस निष्कर्ष से महाबल असमंजस में पड़ गया। पांच दिन के भीतर-भीतर हार को लाने का आश्वासन वह अपनी माता को दे चुका था। यदि इस अवधि में हार की प्राप्ति नहीं होती है तो मां का जीवित रहना असंभव है।
तो फिर अब क्या किया जाए ? चोर का पीछा कैसे किया जाए? महाबल अत्यन्त चिन्तामग्न था।
रात्रि का दूसरा प्रहर पूरा हो रहा था "सारा राजभवन नीरव था। अचानक महाबल के मस्तिष्क में एक विचार कौंधा। वह शय्या से उठा । उसने शय्या पर एक तकिया रख, उस पर एक चादर डाल दी, जिससे देखने वाले को यह लगे कि यहां कोई व्यक्ति सो रहा है। फिर वह हाथ में नंगी तलवार लेकर कक्ष के एक कोने में छिपकर बैठ गया। तीन-चार दिनों से उसे ऐसा भान हो रहा था कि ठीक मध्यरात्रि के समय कोई पुरुष आकृति शयनकक्ष में आती है और कुछ ढूंढ़ती है। इतना ही नहीं, वह उसके शरीर का स्पर्श भी कर जाती है। इस
महाबल मलयासुन्दरी ८६
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