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नगररक्षक ने कक्ष के चारों ओर देखा, फिर उसने पूछा-'राजकुमारी जी! आप कक्ष में अकेली ही हैं ?
मलया कुछ भी नहीं बोली।
नगररक्षक बोला-'यह अन्याय है, अत्याचार है'अपराध कैसा भी क्यों न हुआ हो, पर अपराध करने वाला राजबीज है, सामान्य गुनहगार नहीं। अतिप्रिय और एकाकी कन्या।' एक निःश्वास डालते हुए नगररक्षक ने कहा'राजकुमारी जी ! महाराजा ने आपके वध का आदेश दिया है और यह जघन्य कार्य मुझे सौंपा गया है।' __ 'नगररक्षक ! क्या तुम महाराजा के कुपित होने का कारण बता सकते
हो ?'
____ 'नहीं, कुमारीजी ! मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं है केवल राजाज्ञा सुनाने आया हूं.'मध्याह्न के पश्चात् मैं आपको लेने आऊंगा।'
'अच्छा'.." राजकुमारी ने और कुछ भी नहीं कहा।
नगररक्षक वहां से सीधा महाराजा के पास गया। अभी तक महामंत्री सुबुद्धि पहुंचे नहीं थे। नीचे ही कहीं रुक गए थे। नगररक्षक को देखते ही महाराजा ने कहा---'राजाज्ञा सुना दी?'
'जी हां...' 'तो अब तुम प्रस्थान की तैयारी करो।'
'कृपावतार ! यह एक नियम है कि वध से पूर्व राजकुमारी की अंतिम इच्छा पूरी की जाए। किन्तु उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं कहा ''यदि आप आज्ञा दें तो उनके पास एक दासी की व्यवस्था करूं ।'
'कोई आपत्ति नहीं है।
नगररक्षक बाहर आया और मलया की प्रिय दासी वेगवती को मलया के पास रहने और उसे धैर्य बंधाने के लिए भेज दिया।
और महामंत्री नीचे सारी बात सुनकर गंभीर मुद्रा में राजा के समक्ष आया।
महाराजा ने महामंत्री का स्वागत करते हुए कहा--'महामंत्रीश्वर ! आपने कुछ सुना है?
'मैंने मात्र मृत्युदण्ड देने की बात सुनी है। किन्तु इतनी उतावली क्यों की गई है ? 'बहुत बार आवेश में व्यक्ति कर्तव्यच्युत हो जाता है। जो कल तक आपकी प्रिय कन्या थी, क्या वह आज वैसी नहीं है? कन्या ने ऐसा कौन-सा अपराध कर डाला है कि आप इतने कठोर हो रहे हैं ? कन्या के लिए आपके हृदय में कल तक जो स्नेह-सरिता बह रही थी, आज वह एकाएक कैसे सूख गई ? महाराज ! संसार का प्रत्येक कार्य आगे-पीछे देखकर, सोच-समझकर ही करना चाहिए। उतावलेपन से और अविवेक से किया हुआ कार्य मृत्यु से भी
महाबल मलयासुन्दरी ८५
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