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भयंकर हो जाता है और फिर पश्चात्ताप के सिवाय और कुछ नहीं बचता।' ___'महामंत्री ! आप तो मेरे स्वभाव से परिचित हैं। मैं कभी उतावलपन नहीं करता, अन्याय नहीं करता। राजकन्या ने भयंकर अपराध किया है। उसने समग्र राज-परिवार को नष्ट करने का षड्यन्त्र रचा था। मेरे प्रख्यात वंश के पुण्यबल से उस षड्यन्त्र का पता लग गया। अन्यथा...' - 'महाराज ! बहुत बार शंकाएं निर्मूल होती हैं।'
'मंत्रीश्वर ! यदि शंका निर्मूल हो तो क्या मैं मेरी लाडली कन्या को मृत्युदंड दे सकता हूं?' कहकर महाराजा ने रानी कनकावती की सारी बात मंत्रीश्वर को बतायी। राजा ने सारी बात इस ढंग से कही कि मंत्रीश्वर अवाक् रह गया।
रानी कनकावती के प्रति मंत्रीश्वर का मान था ही नहीं। उन्हें यह तत्काल संशय हो गया कि रानी कनकावती ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए ही तो यह बात नहीं बनाई है ? किन्तु इस तथ्य के असत्य ठहरने पर स्वयं के वध की शर्त लगाई है और लक्ष्मीपुंज हार की घटना भी ऐसी है कि उससे राजकुमारी दोषी साबित होती है। ___महामंत्री गंभीर हो गए। महाराज ने कहा- 'मंत्रीश्वर ! जो न्याय के आसन पर आसीन हैं, उन्हें प्रेम या स्नेह के अधीन नहीं होना चाहिए। आप भी तो इसी सूत्र को मानते हैं।'
'हां, महाराज! स्नेह-संबंध एक क्षणिक आवेश है। किन्तु न्याय के आसन पर बैठने वाले दया तो कर ही सकते हैं।'
___ 'इस स्थिति में दया का प्रश्न ही नहीं उठता । ऐसा भयंकर राजद्रोह करने वाले को तत्काल मौत के घाट उतार देना चाहिए।' महाराज ने कहा ।
रानी चंपकमाला बोली--'मंत्रीश्वर ! मलया मेरे हृदय का टुकड़ा है... मुझे अत्यन्त प्रिय है। मैंने उसके लिए अनेक स्वप्न संजोए थे. फिर भी महाराज ने जो निर्णय किया है वह उचित है। इस स्थिति में दया कैसी ? स्वयंवर में भाग लेने के लिए राजकुमार आ रहे हैं। इस स्थिति में मलया को जीवित रखना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता।'
___ महामंत्री कुछ उत्तर दें, उससे पूर्व ही मलया की प्रिय दासी वेगवती कक्ष में प्रवेश करने के लिए द्वार पर रुकी।
महाराजा ने उसे अन्दर आने की आज्ञा दी। वेगवती ने कक्ष में प्रवेश किया। उसने सबको नमस्कार कर महाराजा से कहा---'कृपावतार ! राजकुमारी जी ने आपको एक संदेश भेजा है।'
'बोल...'
'उन्होंने कहा है-आपने मुझे मृत्युदंड की सजा दी, यह मैंने नगररक्षक से जाना है। मुझे मौत का तनिक भी भय नहीं है। क्योंकि एक दिन तो मरना ही ८६ महाबल मलयासुन्दरी
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