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१७. कर्म - विपाक
महाराजा वीरधवल की आज्ञानुसार मलयासुन्दरी को उसी के कक्ष में नजरबंद कर महाप्रतिहार महाराजा के पास आकर बोला- 'कृपावतार ! आपकी आज्ञा का पालन हो चुका है । कक्ष के आसपास तथा चारों ओर सशस्त्र सैनिकों को तैनात कर दिया गया है और उन्हें यह आदेश भी दे दिया है कि राजाज्ञा के बिना कोई भी व्यक्ति राजकुमारी से मिलने का प्रयत्न करे तो उसे वहीं समाप्त कर दो ।'
'बहुत अच्छा ''अब तू बाहर रह । मेरी आज्ञा के बिना इस कक्ष में कोई न आए, इसका ध्यान रखना ।'
'जी ।' कहकर महाप्रतिहार बाहर चला गया ।
महाराजा के कक्ष में दो रानियों के सिवाय और कोई नहीं रहा ।
राजा वीरधवल ने अपनी प्रिय पत्नी चंपकमाला की ओर देखते हुए कहा'प्रिये ! तू समझ पायी कि मलया क्या करना चाहती थी ? अब तू बता कि उसे क्या दंड देना चाहिए ?"
'स्वामिन् ! इस विषय में आप ही अधिक सोच सकते हैं । आप न्यायावतार हैं। जैसा उचित समझें वैसा करें ।'
'प्रिये ! मलया ने भयंकर अपराध किया है । यह राज्य को हड़पने, परिवार का विनाश करने का जघन्यतम कार्य है । यदि मुझे नीति के प्रति वफादार रहना है तो संतान के अपराध के प्रति तथा अन्य व्यक्ति के अपराध के प्रति भेदभाव नहीं रखना है इस जघन्यतम अपराध का दंड है मौत की सजा ।'
चंपकमाला बोली- 'महाराज ! प्रेम से कर्त्तव्य बड़ा होता है । आप अपने कर्तव्य में अटल रहें, यही मेरी हार्दिक इच्छा है । मलया स्वभाव से शांत, सरल और सुसंस्कारी लगती थी परन्तु उसका हृदय इतना मलिन है, यह मैं भी नहीं जान पायी थी । आप जो कुछ करेंगे, वह न्याययुक्त ही होगा, इसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है । कुल की रक्षा के लिए, नीति की पालना के लिए आप: मलया को जो भी दंड देंगे, वह उचित ही होगा ।'
८२ महाबल मलयासुन्दरी
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