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लक्ष्मीपुंज हार उसकी शय्या पर पड़ा है। उसने हार को हाथ में लेकर कहा'सोमा ! यह तो लक्ष्मीपुंज हार ही है। महाराजा ने मलया को भेंट रूप दिया था । किन्तु इसको मेरी छाती पर किसने ला पटका ? निश्चित ही किसी देव ने मेरे पर करुणा कर सहानुभूति प्रदर्शित की है सोमा ! अवाक् बनकर क्या देख रही है ? जिस अवसर की तू प्रतीक्षा कर रही थी, उस अवसर का लाभ देव ने हमें दिया है । हमें हार कहीं छिपा देना चाहिए और मुझे कल ही महाराजा के पास जाकर सत्य नहीं, किन्तु बनावटी बात रखनी चाहिए । जो व्यक्ति सत्य पर विश्वास नहीं करते, वे व्यक्ति बनावटी बात पर विश्वास कर लेते हैं ।'
सोमा ने निकट आकर कहा - 'क्या यही लक्ष्मीपुंज हार है ?"
'हां, यही है । इस हार को मैंने अनेक बार देखा है तू किञ्चित् भी शंका मत कर किसी देव या देवी ने मेरी व्यथा से द्रवित होकर ऐसा किया है, ऐसा मैं मानती हूं ।' सोमा अत्यन्त प्रसन्न हुई और तब कनकावती और सोमादोनों ने मिलकर उस हार को ऐसे स्थान में छिपा दिया कि उस स्थान की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता ।
हार को छिपाकर रानी पुनः शय्या पर आकर सो गई परन्तु अब नींद कैसे आती ? मनुष्य में जब हर्ष का अतिरेक होता है अथवा मनोज्ञ वस्तु की प्राप्ति हो जाती है तब उसे नींद से भी प्यारा होता है— जागरण ।
प्रातःकाल हुआ ।
रानी कनकावती ने सब कार्य त्वरा से संपन्न किए। उसे महाराजा के पास * पहुंचने की उतावली थी। स्नान आदि से निवृत्त हो, वह महाराजा के पास पहुंची। महाराजा अभी दंतप्रक्षालन कर रहे थे. स्नानगृह में जाने की तैयारी थी, इतने में ही महाप्रतिहार ने आकर कहा - 'कृपावतार ! देवी कनकावती आपसे मिलना चाहती हैं ।'
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'अच्छा'
रानी कनकावती महाराजा के पास आयी, मस्तक झुकाकर मृदु स्वर में बोली- 'आपका चित्त तो प्रसन्न है ?"
'हां, प्रिये ! ओह ! आज तो तू बहुत जल्दी आ गई। कहीं प्रस्थान करना 'है क्या ?'
'मेरे लिए आपके चरण कमल के सिवाय और स्थान ही कहां है ? मैं आज - आपके वंश के कल्याण की बात कहने आयी हूं ।'
'बहुत अच्छा ! आ, प्रिये ! अन्दर आकर बैठ । मलया के स्वयंवर की तैयारी में कहीं कोई त्रुटि रह गई हो तो तू मुझे बता, मैं उसका परिष्कार करूंगा ।' रानी एक आसन पर बैठ गई । महाराजा उठे और हाथ-मुंह धोकर आने को कह गए। कुछ क्षणों पश्चात् महाराजा आ गए ।
महाबल मलयासुन्दरी ७७
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