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कोई चोर आ नहीं सकता क्योंकि वहां पहुंचने का कोई मार्ग है ही नहीं।
महाराज सुरपाल ने महाप्रतिहार को हार की खोज करने के लिए कहा।
हार के खो जाने से महारानी अत्यन्त व्यथित हो गई। उसे यह दृढ़ आस्था हो गई थी कि हार कल्याणकारी है, सुख और सौभाग्य देने वाला है. इस हार के खो जाने से विपत्ति निश्चित है। इसका गुम होना विपत्ति के आगमन की पूर्व सूचना है। उसने महाबल के दोनों हाथ पकड़कर कहा-'पुत्र ! यदि यह हार प्राप्त नहीं हुआ तो मेरा जीना व्यर्थ है।' ____ 'मां ! आप व्यथित न हों। मैं किसी भी उपाय से हार आपको ला दूंगा... यदि चोर पाताल में प्रवेश कर गया होगा तो भी मैं उसे ढूंढ़ लाऊंगा'मां ! आप तनिक भी चिन्ता न करें।'
'पुत्र ! लक्ष्मीपुंज हार मात्र रत्नों का हार नहीं है। यह भाग्य-परिवर्तन का साधन है, आशीर्वाद है। यदि यह हार नहीं मिला तो मैं जीवनलीला समाप्त कर दूंगी 'जिस हार के द्वारा मैं अपनी पुत्रवधू को समृद्ध करना चाहती थी, जिस हार के द्वारा मैं राज्य-परंपरा को उज्ज्वल बनाना चाहती थी, उस हार का मैं रक्षण नहीं कर सकी।'
युवराज और महाराजा दोनों ने देवी को सान्त्वना दी, धैर्य बंधाया और हार पुनः प्राप्त हो जाएगा, इस आशा को पुष्ट किया ।
महाप्रतिहार हार की खोज करने ऊपर-नीचे गया। चोर के निशान ढूंढ़ने के लिए उसने सारे रास्ते छान डाले, पर उसे चोरी का अता-पता नहीं चला।
इस प्रकार की चोरी से सब आश्चर्य में डूब गए थे। __ और इधर चन्द्रावती नगरी के राजभवन में भी ऐसा ही एक आश्चर्य घटित हुआ। __रानी कनकावती अत्यन्त व्यथित हो रही थी । ज्यों-ज्यों मलया के स्वयंवर की तिथि निकट आ रही थी, त्यों-त्यों उसके हृदय की उथल-पुथल बढ़ रही थी।
एक रात...
रानी कनकावती विशाल पलंग पर चिन्तामग्न हो, प्रतिशोध की भावना को संजोए हुए सो रही थी। वह निद्राधीन हो गई थी। उसकी प्रिय दासी सोमा पलंग के पास नीचे अपनी शय्या पर सो रही थी। ____ और अचानक कनकावती की छाती पर लक्ष्मीपुंज हार आकर गिरा'' हार के गिरते ही कनकावती हड़बढ़ाकर उठी और 'सोमा ! यह क्या हुआ ?'कहकर चिल्ला उठी। __सोमा भी जाग गई। उसने दीपक पर पड़े ढक्कन को हटाया। सारा शयनकक्ष प्रकाश से जगमगा उठा । रानी कनकावती ने देखा-देव-दुर्लभ ७६ महाबल मलयासुन्दरी
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