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१५. निमंत्रण
स्वयंवर की बात चारों ओर फैल गई। एक दिन महाराजा वीरधवल अपने राज्य के महाबलाधिपति महानाम को बुला भेजा। अन्यान्य वरिष्ठ मंत्रीगण भी आ गए । महाराज ने कहा-'हमें ऐसी योजना बनानी है, जिससे स्वयंवर की सभा में किसी प्रकार का कलह न हो और राजकन्या को बलवान पति मिल जाए, इसलिए हमें बल-परीक्षा का प्रयोग रखना चाहिए।'
महाराजा ने पूछा- 'बल-परीक्षा का प्रयोग ? समझा नहीं...'
'महाराज ! देवी सीता के स्वयंवर में धनुष्य-भंग से बल-परीक्षण किया गया था। देवी द्रौपदी के स्वयंवर में मत्स्यवेध से शक्ति-परीक्षण किया गया था। इसी प्रकार के किसी अन्य प्रयोग की यदि हम योजना करते हैं तो वह अच्छा रहेगा।'
महाराजा वीरधवल को महानाम का परामर्श उचित लगा। उन्होंने कहा—'महानाम ! तुम्हारा परामर्श क्षत्रियोचित है. 'बल-प्रयोग के लिए हमें कौन-सा प्रयोग प्रस्तुत करना होगा ?'
आर्य महानाम कुछ सोचकर बोला-'महाराज ! अपने शस्त्र-भंडार में वज्रसार नाम का एक अतिप्राचीन प्रचंड धनुष्य है । वह अनेक पीढ़ियों से शस्त्र-भंडार में है । ऐसा धनुष्य आज भारत में कहीं नहीं है। इसकी प्रत्यंचा को चढ़ा पाना सरल कार्य नहीं है। जिसकी भुजाओं में शक्ति छलकती है, जिसके हृदय में अपूर्व आत्म-विश्वास है और जिसमें यौवन अठखेलियां करता है, वही व्यक्ति इस महान् धनुष्य की प्रत्यंचा चढ़ा सकता है। दूसरा नहीं।'
वाह-वाह ! बल-परीक्षण के लिए यह उत्तम योजना है।' महाराज ने प्रसन्न स्वरों में कहा।
इस प्रकार बल-परीक्षण की योजना निश्चित हो गई और विभिन्न राजाओं को योजना की रूपरेखा भेजने के लिए उसका प्रारूप तैयार कर लिया गया। __स्वयंवर के समाचार दूर-दूर के राजाओं तक पहुंचा दिए गए । सारे राज्य में जोर से तैयारियां होने लगीं । लोगों का मन कुतूहल से भर रहा था । सारा ७२ महाबल मलयासुन्दरी
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