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तीन दिन बीत गए।
एक दिन महाराजा ने सभी मंत्रियों को एकत्रित कर, मलया के स्वयंवर को बात कही और उचित विचारमंथन करने के लिए कहा।
स्वयंवर की बात सुनकर सभी मंत्री चिन्तन में पड़ गए । कुछ क्षणों के मौन के पश्चात् महामंत्री ने कहा-'महाराज ! आपका विचार उत्तम है, किसी स्वयंवर का आयोजन बहुत जोखिमपूर्ण होता है। कभी-कभी इससे युद्ध भी छिड़ जाते हैं और उससे स्थिति बिगड़ जाती है । अच्छा तो यह कि आप योग्य वर की खोज करें और फिर मलया का विवाह कर दें।'
महाराजा वीरधवल और महारानी चंपकमाला-दोनों ने महामंत्री का कथन सुना । उनका मन स्वयंवर करने के पक्ष में ही था।
बहुत लंबे विचार-मंथन के पश्चात स्वयंवर रचने की बात तय हो गई। राजपुरोहित को मुहूर्त देखने का आदेश दिया।
दूसरे दिन...
राजपुरोहित ने स्वयंवर के लिए शुभ मुहूर्त महाराजा को बता दिया और स्वयंवर की घोषणा की तिथि भी बता दी। ___ इधर युवराज महाबल अपने नगर पृथ्वीस्थानपुर पहुंच गया। उसने महाराजा पिताश्री को प्रणाम किया और माता को प्रणाम करने राजप्रासाद में चला गया। माता पद्मावती को प्रणाम कर उसने लक्ष्मीपुंज हार माता के चरणों में अर्पित कर दिया। ___ माता ने पूछा--'पुत्र ! ऐसा दिव्य और मूल्यवान हार तुम्हें कहां से प्राप्त
हुआ?'
महाबल ने तत्काल एक असत्य बात कही-'मां ! चंद्रावती के युवराज के साथ मैरी मैत्री हो गई थी। मैत्री की स्मृति-स्वरूप उसने मुझे हार भेंट दिया
माता ने महाबलकुमार को आशीर्वाद दिया और नमस्कार महामंत्र का स्मरण कर हार को पहन लिया।
परन्तु महाबल का चित्त अत्यधिक चंचल हो गया था। मलयासुन्दरी ने उसको वश में कर डाला था । मलयासुन्दरी को प्राप्त करने की बात वह मातापिता से कैसे कहे, इसी विचार में कुछ दिन बीत गए।
महाराजा वीरधवल ने स्वयंवर की बात प्रचारित करा दी।
महाबल मलयासुन्दरी ७१
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