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'मलया का स्वयंवर रचा जाए। देश-विदेश के राजकुमारों को हम आमंत्रित करें और तब मलया अपने मनपसन्द राजकुमार के गले में वरमाला डाले।'
'ठीक हैइस विषय में मुझे मन्त्रियों से परामर्श करना होगा । मुझे लगता है कि रात्रि में मां-बेटी के बीच चर्चा का यही विषय रहा होगा !' कहकर महाराज हंसने लगे।
चंपकमाला मौन रही और मुसकराने लगी। महाराजा स्नान आदि से निवृत्त होने के लिए वहां से चले गए।
चंपकमाला भी स्नानगृह की ओर गई पर वह रात्रि में घटित घटना को मलया से जानना चाहती थी। फिर उसने सोचा- ऐसा करने पर मलया का मन आहत हो सकता है, यह सोचकर चंपकमाला ने मलया से इस विषय में बात न करने का निश्चय किया।
रानी कनकावती का चित्त आहत-विहत हो चुका था। वह एक घायल सिंहनी की भांति आकुल-व्याकुल हो रही थी। उसने सोचा-मैंने सब कुछ आंखों से देखा था, फिर भी मुझे झूठी प्रमाणित होना पड़ा । क्या मायाजाल है, कुछ समझ में नहीं आता। ___रानी कनकावती की प्रिय दासी सोमा ने सारी बात सुनी । उसने महादेवी के अपमान पर अपना रोष प्रकट किया। उसने कहा--'देवी ! चंपकमाला और मलया ने मिल-जुलकर आपको अपमानित करने का षड्यन्त्र रचा है।'
'सोमा ! तेरे कथन में मुझे कुछ तथ्य नजर आ रहा है। निश्चित ही मांबेटी ने यह उपक्रम किया और मुझे महाराजा की दृष्टि में गिराने का प्रयत्न किया। वे अपने प्रयत्न में सफल रहीं। मुझे अब मेरे अपमान का बदला अवश्य लेना है ! वह बदला कैसे लिया जाए, मात्र यह सोचना हैं'-रानी कनकावती ने कहा। ___सोमा बोली--'महादेवी ! आप निश्चिन्त रहें । आपका अपमान या तिरस्कार करने वाले के विनाश का उपाय मैं स्वयं निकाल लूंगी, किन्तु इस कार के लिए जल्दबाजी नहीं करनी है, धैर्य से कार्य करना है।' ___कनकावती सोमा की ओर देखती रही । सोमा ने कहा- 'देवी ! अभी पन्द्रह दिनों तक आप ऐसी प्रसन्न मुद्रा में रहें, मानो कुछ घटित ही न हुआ हो। फिर हमें क्या करना है, वह मैं आपको बताऊंगी।' ____कनकावती ने सोमा के हाथ को पकड़ते हुए कहा-'सोमा ! तू मेरी दासी नहीं, प्रिय सखी है। यदि तू रात में यहां रहती तो तुझे तिरस्कार का विष नहीं पीना पड़ता।'
सोमा ने रानी को धैर्य बंधाया। रानी स्नानागार में चली गई।
७० महाबल मलयासुन्दरी
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