________________
यदि छोटी रानी को नहीं बचाती तो न जाने महाराजा उसकी क्या अवस्था करते ? मलया परम पवित्र और निर्मल है--यह छोटी रानी ने क्यों नहीं जाना?' - चंपकमाला को यह बात नयी लगी 'किन्तु वह अत्यन्त चतुर और धैर्यवान थी। उसने गंभीर स्वर में कहा- 'ऐसी बात की चर्चा ही नहीं करनी चाहिए। तू जा, मेरे स्नान की व्यवस्था कर।' ___ मुख्यदासी मस्तक नमाकर चली गई और महादेवी का मन प्रश्नों की परंपरा से भर गया। यह कैसे हुआ ? मैं तो वहां गई ही नहीं थी, फिर मुझे वहां कैसे देखा गया ? ऐसा चमत्कार तो हो ही नहीं सकता? फिर यह सब कैसे हुआ ? अथवा दासियां कोई स्वप्न-कथा तो नहीं कह रही हैं ? मैं मलया को जानती हूं। बहन ने यह आरोप कैसे लगाया? क्या यह बिलकुल मिथ्या है ? हां, मिथ्या ही तो होगा । मेरी बिटिया पवित्र है, गंगाजल-जैसी निर्मल है। ___ वह इन सारे प्रश्नों में उलझ रही थी। इतने में ही एक परिचारिका ने आकर निवेदन किया--'देवी ! महाराज पधार रहे हैं।'
महादेवी को आश्चर्य हुआ कि महाराज कभी इस वेला में नहीं आते... आज कैसे ? अभी तक उन्होंने स्नान भी नहीं किया होगा? इतने में ही महाराज खंड के द्वार पर आ गए। 'महादेवी ने उठकर नमस्कार किया।
महाराजा ने कहा--'देवी ! रात्रि की घटना से मेरा मन अत्यन्त व्यथित हुआ है। 'कनक के हृदय में इतना विष भरा है, इसका मुझे अनुमान भी नहीं था। किन्तु तुम आधी रात की वेला में मलया के खंड में क्यों गई थी ?'
रानी ने मन-ही-मन सोचा, दासी के कथन में सत्यता है । वह बोली'स्वामिन् ! किसी के मन में कितना ही विष हो परन्तु वह हमारे परिवार का ही एक अंग है तो हमें उसके प्रति ममता रखनी होगी.''आप एक माता के हृदय को जानते ही हैं 'पुत्री के मन में क्या है, यह जानने का मन माता के अतिरिक्त किसे हो सकता है ? महाराज ! हमें अब एक चिंतन अवश्य ही कर लेना चाहिए।'
'कैसा चितन, प्रिये? - 'मलया पन्द्रह वर्ष पूरे कर सोलहवें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है अब उसके विवाह का चिन्तन करना चाहिए।' ' महाराज विचारमग्न हो गए । दो क्षण पश्चात् वे बोले-'प्रिये ! मलया के योग्य कोई राजकुमार मेरी दृष्टि में तो नहीं आ रहा है।' - 'इसके बिना तो क्या यह अच्छा नहीं रहेगा कि हम मलया को अपने भाग्य का निर्णय करने की स्वतन्त्रता दे दें ?' _ 'मैं नहीं समझ सका...'
महाबल मलयासुन्दरी ६६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org