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१४. स्वयंवर का निर्णय
जो बात विचित्र होती है, उसके प्रति आकर्षण होता है और जो बात गुप्त रखने की होती है, उसके स्वत: पंख आ जाते हैं।
प्रातःकाल हुआ।
कनकावती संकल्प-विकल्पों के झूले में झूलती हुई रात्रि के अंतिम प्रहर में निद्राधीन हुई थी । यही स्थिति महाराज वीरधवल की थी। मलयासुन्दरी को सोने का समय ही थोड़ा मिला था और वह ऊषा की किरणों से स्पृष्ट होकर जाग गई थी।
किन्तु रात्रि में घटित घटना की चर्चा दास-दासियों में व्यापक बन गई थी।
महाराज के साथ रात में आए हुए चारों सैनिकों ने रात में देखी हुई घटना अपने साथियों को सुनायी और वह बात एक कान से दूसरे कान तक पहुंचते-पहुंचते सारे राजभवन में व्याप गई थी।
महादेवी चंपकमाला भी प्रातःकाल जल्दी ही उठ गई और अपने नित्य-नियम के अनुसार सामायिक की आराधना करने बैठ गई।
सामायिक की आराधना संपन्न हुई, तब महारानी की मुख्य परिचारिका ने नमस्कार कर महारानी से कहा--'महादेवी ! आप रात्रि में राजकन्या के कक्ष में गईं और मुझे साथ में नहीं ले गईं।'
यह सुनकर चंपकमाला को आश्चर्य हुआ। उसने पूछा- क्या हुआ था ?'
'अच्छा ! आप जानती हुई भी अनजान बन रही हैं। रात्रि में आप जब कुमारी मलया से बात कर रही थीं तब छोटी रानी ने महाराजा को जगाकर कहा था कि मलया पर-पुरुष से बातचीत कर रही है तब महाराजा सैनिकों को साथ लेकर वहां गए बाहर से दरवाजे पर सांकल थी। महाराजा ने कपाट खोले । उन्होंने अन्दर जाकर देखा कि मलयासुन्दरी आपके साथ बातचीत कर रही है। महाराजा छोटी रानी पर बहुत कुपित हुए"फिर छोटी रानी ने महाराजा से कहा कि आप कुमारी को पूछे कि वह लक्ष्मीपुंज हार कहां है ? तब आपने तत्काल अपने गले से हार निकालकर महाराज को दिखाया था.''आप ६८ महाबल मलयासुन्दरी
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