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________________ १३. लक्ष्मीपुंज हार राजकन्या मलया के कक्ष में पैर रखते ही राजा आश्चर्य में पड़ गया। उससे भी अधिक आश्चर्य हुआ रानी कनकावती को। राजा को इस प्रकार आया जानकर चंपकमाला के रूप में बैठा हुआ महाबल तत्काल उठा, महारानी कनकावती की ओर देखते हुए बोला-'आओ बहन ! अभी अचानक कैसे आना हुआ है ? पश्चात् राजा की ओर देखकर कहा'आप, ये सारे सैनिक, यह सब क्या नाटक है ?' ___'नहीं, प्रिये ! कोई मुख्य बात नहीं है। जिसको तू बहन कहकर आदर देती है, उसके कारण मुझे इस मध्यरात्रि में यहां आना पड़ा है किन्तु इस मध्यरात्रि में मां-बेटी में क्या चर्चा हो रही है ?' ___'स्वामिन् ! मुझे नींद नहीं आ रही थी, इसलिए मलया के पास आ गई। जब मां-बेटी एकान्त में होती हैं, तब अनेक बातें चल पड़ती हैं। किन्तु आपने जो कहा कि तेरी बहन के कारण यहां आना पड़ा है, यह बात समझ में नहीं आयी।' ___'देवी ! तेरी बहन के हृदय में जो ईर्ष्या की ज्वाला धधक रही है, वह इतने वर्षों से स्पष्ट दिखाई नहीं दे रही थी। आज मुझे उसका साक्षात्कार हो गया है । यह कुछ क्षणों पूर्व मेरे पास आयी और कभी विश्वास न करने योग्य बात कही। रानी कनकावती की अवस्था विचित्र-सी हो रही थी। वह स्तब्ध थी। काटो तो खून नहीं, इतनी जड़ता से वह व्याप्त हो गई थी। वह समझ नहीं पा रही थी कि कक्ष के कपाट बाहर से बन्द थे, सांकल दी हुई थी, फिर महाबल के स्थान पर रानी चंपकमाला कहां से आ गई ? ____ महाराजा ने रानी कनकावती की ओर देखते हुए कहा—'मलया केवल चंपकमाला की ही पुत्री नहीं है, तेरी भी पुत्री है। उस पर कलंक लगाते हुए तुझे शर्म नहीं आयी ? बता, कहां है वह पुरुष ?' महाराजा ने कठोरता से कहा। रानी कनकावती ने करुण स्वरों में कहा--'महाराज ! मैंने अपनी आंखों महाबल मलयासुन्दरी ६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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