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की सांकल निकाल दो ।' 'परन्तु आप
...
'ऐसा साहस करने वाला अपने बचाव का उपाय भी साथ लिये चलता है । मेरे पास रूपपरावर्तिनी गुटिका है । मैं अभी तुम्हारी माता चम्पकमाला का रूप धारण कर लेता हूं, क्योंकि मैंने उनको राजसभा में उस दिन देखा था ।'
ऐसा कहकर महाबल ने कमर में बंधी गुटिका निकाल मुंह में रख ली ... मन में उसने देवी चंपकमाला के स्वरूप का चिन्तन किया ।
मलयासुन्दरी ने कपाट के अन्दर की सांकल निकाल दी । उसके कानों में पांच-सात व्यक्तियों के पदचाप सुनायी दिए । वह तत्काल कुमार के पास आयी और कुमार के स्थान पर अपनी माता चंपकमाला को देखकर स्तब्ध रह गयी । महाबल ने मुसकराते हुए कहा --- प्रिये ! यह सब उस गुटिका का चमत्कार है अब तुम ऐसे बैठ जाओ जैसे कुछ हुआ ही न हो "मैं सब संभाल लूंगा ।' मलयासुन्दरी गुटिका के अपूर्व चमत्कार से चमत्कृत होती हुई, सामने ढले एक आसन पर बैठ गई ।
उसी समय कक्ष के किवाड़ों की बाहर की सांकल खुलने की आवाज आयी और तत्काल कक्ष का द्वार खुल गया ।
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