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हो गई.. 'मैंने सोचा-मैं भारी विपत्ति में फंस गया हूं। तुम्हारी अपर माता ने कामभोग की आकांक्षा व्यक्त की। मैंने उस परिस्थिति को टालने के लिए बहाना बनाया और बोला-'देवी ! मैं मलयासुन्दरी को सन्देश देकर तुम्हारे पास लौट आऊंगा।'
'ओह ! अब क्या होगा? वह ईर्ष्या से भरी हुई है। वह अनर्थ करेगी। मैं आपके वध का निमित्त बनूंगी'ओह ! अब इसका क्या उपाय हो सकता है ? ___ 'प्रिये ! तुम निश्चिन्त रहो। मैं अभी इस वातायन के मार्ग से चला जाऊंगा।'
इधर रानी कनकावती तेजी से कदम बढ़ाती हुई महाराजा के शहनगृह की ओर गयी।
महाराजा का शयनगृह अलग था 'महारानी चंपकमाला का शयनगृह भी एक तरफ था।
महाराजा वीरधवल निद्राधीन हो चुके थे। बाहर एक प्रहरी जागृत बैठा था। वह रानी कनकावती को देखकर चौंका। कनकावती ने महाराजा को जगाने की आज्ञा दी। ___ महाराजा जागृत हुए। कनकावती ने कहा-राजन् ! महाबल नाम का एक युवक कुमारी मलया के कक्ष में है और राजकन्या ने उसे वहां रोक रखा
यह सुनते ही महाराजा वीरधवल का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। वह बोला-'प्रिये ! यह बात किसी से सुनकर कह रही हो या कैसे ? मलया तो बहुत संस्कारी है।' ___'स्वामिन् ! मिथ्या बात कहने का प्रयोजन ही क्या है ? मैंने स्वयं देखा है। कुछ बातें स्वयं कानों से सुनी हैं। फिर मैंने बाहर से सांकल लगायी और आपके पास चली आयी। आप पधारें और निगह कराएं । वहां जाने से पूर्व आप प्रासाद के चारों ओर प्रहरियों को भेज दें जिससे कि महाबल किसी भी रास्ते से निकल न सके।'
तत्काल महाराजा ने कंधे पर उत्तरीय रखा और प्रहरियों की व्यवस्था का भार महाप्रहरी को दे वहां से चले।
महाराजा का मन था कि रानी चंपकमाला को साथ ले लें, किन्तु पहले पूरी बात को देख लेने पर ही उसे बुलाने का निश्चय कर राजा वीरधवल रानी कनकावती के साथ चल पड़ा।
इधर मलयासुन्दरी अनिष्ट की आशंका से अकुलाहट का अनुभव कर रही थी।
महाबल ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा---'तुम निश्चिन्त रहो, जाओ, किवाड़
महाबल मलयासुन्दरी ६१
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