________________
१२. गुटिका का चमत्कार
कक्ष का द्वार खुलते ही महाबल ने क्षणभर के लिए बाहर खड़े रहकर चारों
ओर देखा । कक्ष खाली पड़ा था। कहीं कोई नजर नहीं आया। उसने सोचामलया कहां होगी ? क्या वह कहीं दूसरे खंड में तो नहीं चली गई है।
कक्ष में एक दीपक जल रहा था.''दीपक पर जाली का एक आवरण पड़ा था, जिससे कि प्रकाश मन्द रहे, फैले नहीं। फिर भी अत्यन्त मन्द प्रकाश दीपक के चारों ओर बिखर रहा था। - महाबल वापस मुड़े उससे पूर्व ही उसकी दृष्टि वातायन की ओर पड़ी और उसे यह अनुमान हुआ कि वहां कोई व्यक्ति है। - प्रतिच्छाया से उसने यह अनुमान लगाया कि यह आकृति किसी स्त्री की है। संभव है, वह मलयासुन्दरी ही हो।
साहस के साथ वह कक्ष में प्रविष्ट हुआ और कक्ष के द्वार बन्द कर दिए। कपाट बन्द करते समय सहज आवाज हुई 'वातायन की जालिका से बाहर देखने वाली मलया चौंकी 'तत्काल उसने मुड़कर देखा "एक पुरुष की आकृति देख उसने पूछा-'कौन ?'
'मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देने आया हूं।'
मलयासुन्दरी का मन भय से आक्रान्त हो गया । उसने सोचा--मेरे कक्ष तक यह युवक कैसे आया? कौन है यह ? क्या यह वही है, जिसको मैंने उपवन में कुछ समय पूर्व देखा था ? अरे, यह कोई ठग तो नहीं है, मायावी और तांत्रिक तो नहीं है ? यह रूप बदलकर तो नहीं आया है ? ... महाबल मलयासुन्दरी को एकटक देख रहा था । मलया मौन थी, पर उसके अन्तःकरण के भाव आकृति पर उभर रहे थे। महाबल ने आकृति को पढ़ा और कहा-'सुन्दरी ! भयभीत होने की बात नहीं है। तुम अविचल रहो, अभय रहो। मैं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देने के लिए ही इस नीरव रात्रि में अनेक आशंकाओं से घिरा हुआ यहां आया हूं।' मलयासुन्दरी ने महाबल की मधुरवाणी का पान किया। उसका हृदय
महाबल मलयासुन्दरी ५७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org