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'अपना कार्य सम्पन्न कर मेरे पास ही आना है।'
'हां, आप किसी प्रकार का संशय न करें क्योंकि मेरे जीवन-मरण का प्रश्न आपके अधीन है फिर आपका यौवन युवक के लिए वरदान है...'
रानी ने महाबल का हाथ भींचा। महाबल मन-ही-मन रानी के प्रति रुष्ट हो रहा था । पर उस समय...
रानी कनकावती अपने कक्ष से बाहर आयी। पीछे-पीछे महाबल कुमार चला।
बरामदा सूना पड़ा था । ऊपर की सोपान-वीथी सूनी पड़ी थी।
रानी कनकावती ऊपर के खण्ड में पहुंची। एक कक्ष के द्वार पर खड़ी रही और इशारे से सूचित किया 'यह कक्ष मलया का है।
महाबल ने प्रसन्नता व्यक्त की। .. रानी ने जाते-जाते कहा-'मैं प्रतीक्षा करूंगी.''तुम सन्देश देकर शीघ्र...'
बीच में ही महाबल ने कहा---'मैं शीघ्र ही आपके पास आ पहुंचूंगा।' - 'अच्छा' कहकर रानी कनकावती अपने कक्ष की ओर लौट गई. 'परन्तु वह कक्ष में नहीं गई। वहीं कुछ सोपानों के पास एक ओर खड़ी रह गई।
महाबल ने नमस्कार महामन्त्र का स्मरण किया। द्वार पर सहज धक्का मारा । द्वारा खुल गया।
५६ महाबल मलयासुन्दरी
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