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वातायन में वह उतरा, वह वातायन मलयासुन्दरी का नहीं था, वह था रानी कनकावती का।
एक ओर अंधकार था । झरोखे का द्वार खुला था । मंद प्रकाश की रश्मियां बाहर तक आ रही थीं। उसने वातायन के एक कोने में खड़े रहकर उपवन के चारों ओर देखा । उसने निश्चय कर लिया कि वृक्ष पर चढ़ते और वातायन में उतरते हुए उसको किसी ने नहीं देखा है । द्वार खुला है, पर अंदर कैसे जाए ?... यदि अकस्मात् राजकन्या हड़बड़ाकर उठ खड़ी हो तो क्या होगा ? राजकन्या के साथ कोई दासी हो या सखी हो और वह अपरिचित मुझे देखकर चिल्लाए तो क्या होगा? प्रकाश मधुर है 'वातावरण शान्त और सरस है "राजकुमारी जागृत तो नहीं है ? वह क्यों जागे ? मैंने आने का संकेत तो दिया ही नहीं था।... नहीं-नहीं, वह बहुत निपुण और बुद्धिशालिनी है 'मैं आ पहुंचूंगा, यह कल्पना उसने अवश्य ही की होगी।
एक ओर पर्यंक पर रानी कनकावती अर्द्ध निन्द्रा में सो रही थी। उसने वक्ष की शाखा का खड़-खड़ शब्द सुना और उसकी आंखें खुल गई।
रानी कनकावती सुन्दर थी। उसका आयुष्य पैंतीस वर्ष का था। फिर भी उसका सौन्दर्य और लावण्य अपूर्व था, मनमोहक था। यदि उसमें ईर्ष्या और क्रोध नहीं होता तो उसका चेहरा और अधिक देदीप्यमान होता । पर इन दोनों दूषणों ने उसके सौष्ठव को हानि पहुंचायी थी। ___ रानी कनकावती नि:सन्तान थी और वैद्यों ने उसका परीक्षण कर वन्ध्या होने की बात कही थी। रानी ने इसे स्वीकार भी किया था, फिर भी उसमें कामवासना की उत्तेजना निरन्तर बनी रहती थी। प्रिय-मिलन की आशा से वह सदा भरी रहती थी। महाराज वीरधवल अधिकतया रानी चंपकमाला के महलों में ही रहते थे। यहां यदा-कदा आ जाते थे। __ जिसके वन्ध्यत्व होता है, उसमें कामवासना का उभार भी अधिक होता है । यह कामशास्त्र का एक सूत्र है । यह सच है या झूठ, इस विवाद में हम न पड़ें, पर इतना निश्चित है कि रानी कनकावती काम-भावना से दृप्त थी और वह प्रतिदिन महाराजा की प्रतीक्षा करती रहती थी। वह रात्रि में कौशेय का अत्यन्त मुलायम वस्त्र पहनकर सोती थी। इसके अतिरिक्त वह अंगराग, आभूषण और यौवन को उद्दीप्त करने वाली सामग्री से लदी रहती थी। . ___ कनवावती ने वातायन की ओर देखा । उसको एक छाया-सी दृष्टिगत हुई। उसने सोचा, यह क्या? कोई भ्रम तो नहीं है ? वृक्ष की शाखा की छाया इस ओर कभी नहीं पड़ती "फिर यह क्या है ?
रानी की नींद उड़ गई 'मन में जिज्ञासाएं उभरी पर वह शय्या से उठी नहीं, वहीं सोयी रही।
महाबल मलयासुन्दरी ५३
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