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११. महारानी के खंड में
सभी गहरी नींद में सो रहे थे । परन्तु युवराज उन्निद्र थे। उनकी पलकों में नींद आ ही नहीं रही थी।
रात का पहला प्रहर बीत गया। उसने देखा, सब गहरी नींद सो रहे हैं। वह दूसरे प्रहर के अंत की प्रतीक्षा कर रहा था। वह भी समय आ गया। वह धीरे से शय्या पर से उठा; शय्या को छोड़, कपड़े ठीक किए 'रूपपरावर्तिनी गुटिका का कोई उपयोग हो सकता है, यह सोचकर उसने गुटिका को एक कपड़े में लपेटकर कमर में बांध लिया।
वह नीचे उतरा। राजा के दो प्रहरी अतिथिगृह के द्वार पर बैठे थे.. और नींद ले रहे थे।
वह प्रांगण के बाहर निकला। इधर-उधर देखा । कोई राही दृष्टिगत नहीं हुआ।
वातावरण अत्यन्त शान्त और नीरव था। उपवन के वृक्ष ऊंचे, विशाल और सघन थे। कोई देख सके वैसी आशंका नहीं थी। महाबल धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हुआ राजभवन के पिछवाड़े पहुंचा।
वह पूर्ण सावधान था' ''क्योंकि नीरव रात्रि में राजभवन की ओर जाना और वह भी राजकुमारी के आवास की ओर जाना, किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था । महान् अपराध था। पर महाबल के सामने इसके अतिरिक्त कोई उपाय था ही नहीं । वह अनेक संकल्प-विकल्पों में उलझता-सुलझता हुआ आगे बढ़ रहा था। वह एक स्थान पर आकर रुका।
एक वृक्ष जो वातायन तक पहुंचाने में उपयुक्त था, उसके पास आया''उस समय एक ही झरोखे में दीपक की ज्योति जल रही थी। क्या राजकन्या जाग रही है ? क्या उसने यह कल्पना की होगी कि मैं येन-केन उपाय से मिलने के लिए आऊंगा?
चारों ओर देखते हुए कुमार महाबल ने अपने जूते उतारे, कमर में उन्हें खोसा और वेग के साथ, सर-सर करता हुआ वृक्ष पर चढ़ गया। परन्तु जिस
५२ महाबल. मलयासुन्दरी
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